एक नगर में रहने वाले एक पंडित जी की ख्याति दूर-दूर तक थी। पास ही के गाँव में स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से, उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था। एक बार वे अपने गंतव्य की और जाने के लिए बस में चढ़े, उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए। कंडक्टर ने जब किराया काटकर उन्हें रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया कि कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा दे दिए हैं। पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूंगा। कुछ देर बाद मन में विचार आया कि बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है, आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते हैं, बेहतर है इन रूपयों को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए। वह इनका सदुपयोग ही करेंगे। मन में चल रहे विचारों के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया. बस से उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके, उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा, भाई तुमने मुझे किराया काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे। कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला, क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी है? पंडित जी ...
एक राजा था। उसने एक सपना देखा। सपने में उससे एक परोपकारी साधु कह रहा था कि, बेटा! कल रात को तुम्हें एक विषैला सांप काटेगा और उसके काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है। वह तुमसे पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेना चाहता है। सुबह हुई। राजा सोकर उठा। और सपने की बात अपनी आत्मरक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए? इसे लेकर विचार करने लगा। सोचते- सोचते राजा इस निर्णय पर पहुंचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है। उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया। शाम होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुंचाने की कोशिश न करें। रात को सांप अपनी बांबी में से बाहर निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया। वह जैसे आगे बढ़ता गया, अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देख देखकर आनन्दित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का र...