आस्तां तव स्तवनमस्त-समस्त-दोषं त्वत्सड्कतथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति| दूरे सहस्र किरणः कुरुते प्रभैव पध्माकरेषु जलजानि
विकासभाज्जि||
अर्थात् :
सम्पूर्ण दोषों से रहित आपका स्तवन तो दूर, आपकी पवित्र कथा भी प्राणियों के पापों का नाश कर देती है| जैसे, सूर्य तो दूर,
उसकी प्रभा ही सरोवर में कमलों को विकसित कर देती है|
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