नात्यद् भुतं भुवन-भूषण भूत-नाथ! भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः| तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा भूत्याश्रितं य इह
नात्मसमं करोति||
अर्थात् :
हे जगत् के भूषण! हे प्राणियों के नाथ! सत्यगुणों के द्वारा आपकी स्तुति करने वाले पुरुष पृथ्वी पर यदि आपके समान हो
जाते हैं तो इसमें अधिक आश्चर्य नहीं है| क्योंकि उस स्वामी से क्या प्रयोजन, जो इस लोक में अपने अधीन पुरुष को सम्पत्ति के
द्वारा अपने समान नहीं कर लेता |
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