त्वत्संस्तवेन भव-सन्तति-सन्निबद्धं पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् | आक्रान्त-लोकमति-नीलमशेषमाशु सूर्याशु-भिन्नमिव
शार्वरमन्धकारम् ||
अर्थात् :
आपकी स्तुति से, प्राणियों के, अनेक जन्मों में बाँधे गये पाप कर्म क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं जैसे सम्पूर्ण लोक में व्याप्त
रात्री का अंधकार सूर्य की किरणों से क्षणभर में छिन्न भिन्न हो जाता है|
Comments
Post a Comment