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छत्र-त्रयं तव विभाति शशागं-कान्त- मुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापम्

छत्र-त्रयं तव विभाति शशागं-कान्त- मुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापम्| मुक्ता-फल-प्रकर-जाल-विवृद्घशोभं प्रख्यापयत्त्रिजगतः
परमेश्वरत्वम् |

अर्थात् :
चन्द्रमा के समान सुन्दर, सूर्य की किरणों के सन्ताप को रोकने वाले, तथा मोतियों के समूहों से बढ़ती हुई शोभा को धारण
करने वाले, आपके ऊपर स्थित तीन छत्र, मानो आपके तीन लोक के स्वामित्व को प्रकट करते हुए शोभित हो रहे हैं|

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अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् | परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् || अर्थात् : महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं | पहली –परोपकार करना प...