वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरग-नेत्र-हारि निःशेष-निर्जित-जगत्त्रितयोपमानम्| बिम्बं कलंक-मलिनं क्व निशाकरस्य यद्वासरे भवति
पाण्डु-पलाशकल्पम्|
अर्थात् :
हे प्रभो! सम्पूर्ण रुप से तीनों जगत् की उपमाओं का विजेता, देव मनुष्य तथा धरणेन्द्र के नेत्रों को हरने वाला कहां आपका
मुख? और कलंक से मलिन, चन्द्रमा का वह मण्डल कहां? जो दिन में पलाश (ढाक) के पत्ते के समान फीका पड़ जाता |
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