उद् भूत-भीषण-जलोदर-भार-भुग्नाः शोच्यां दशामुपगताश्च्युत-जीविताशाः| त्वत्पाद-पंकज-रजोऽमृत-दिग्ध-देहा मर्त्या भवन्ति
मकरध्वज-तुल्यरुपाः|
अर्थात् :
उत्पन्न हुए भीषण जलोदर रोग के भार से झुके हुए, शोभनीय अवस्था को प्राप्त और नहीं रही है जीवन की आशा जिनके,
ऐसे मनुष्य आपके चरण कमलों की रज रुप अम्रत से लिप्त शरीर होते हुए कामदेव के समान रुप वाले हो जाते हैं|
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