सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम्| बिम्बं वियद् विलसदंशुलता-वितानं तुगोंदयाद्रिशिरसीव
सहस्र-रश्मेः |
अर्थात् :
मणियों की किरण-ज्योति से सुशोभित सिंहासन पर, आपका सुवर्ण कि तरह उज्ज्वल शरीर, उदयाचल के उच्च शिखर पर
आकाश में शोभित, किरण रुप लताओं के समूह वाले सूर्य मण्डल की तरह शोभायमान हो रहा है|
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