मत्तद्विपेन्द्र-म्रगराज-दवानलाहि- संग्राम वारिधि-मनोदर-बन्धनोत्थम्| तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव यस्तावकं स्तवमिमं
मतिमानधीते|
अर्थात् :
जो बुद्धिमान मनुष्य आपके इस स्तवन को पढ़ता है उसका मत्त हाथी, सिंह, दवानल, युद्ध, समुद्र जलोदर रोग और बन्धन
आदि से उत्पन्न भय मानो डरकर शीघ्र ही नाश को प्राप्त हो जाता है|
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