कुन्दावदात-चल-चामर-चारु-शोभं विभ्राजते तव वपुः कलधोत-कान्तम्| उद्यच्छशागं-शुचि-निर्झर-वारि-धार मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव
शांतकोम्भम्|
अर्थात् :
कुन्द के पुष्प के समान धवल चँवरों के द्वारा सुन्दर है शोभा जिसकी, ऐसा आपका स्वर्ण के समान सुन्दर शरीर, सुमेरुपर्वत,
जिस पर चन्द्रमा के समान उज्ज्वल झरने के जल की धारा बह रही है, के स्वर्ण निर्मित ऊँचे तट की तरह शोभायमान हो रहा है|
Comments
Post a Comment