तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ! तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय| तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय तुभ्यं नमो जिन!
भवोदधि-शोषणाय|
अर्थात् :
हे स्वामिन्! तीनों लोकों के दुःख को हरने वाले आपको नमस्कार हो, प्रथ्वीतल के निर्मल आभुषण स्वरुप आपको नमस्कार
हो, तीनों जगत् के परमेश्वर आपको नमस्कार हो और संसार समुन्द्र को सुखा देने वाले आपको नमस्कार हो|
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