शच्योतन्मदाविल-विलोल-कपोल-मूल- मत्त-भ्रमद्-भ्रमर-नाद-विवृद्ध-कोपम् | एरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं दृष्ट्वा भयं भवति नो
भवदाश्रितानाम्|
अर्थात् :
आपके आश्रित मनुष्यों को, झरते हुए मद जल से जिसके गण्डस्थल मलीन, कलुषित तथा चंचल हो रहे है और उन पर
उन्मत्त होकर मंडराते हुए काले रंग के भौरे अपने गुजंन से क्रोध बढा़ रहे हों ऐसे ऐरावत की तरह उद्दण्ड, सामने आते हुए हाथी को
देखकर भी भय नहीं होता|
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