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उन्निद्र-हेम-नव-पंकज-पुञ्ज-कान्ती पर्युल्लसन्नख-मयूख-शिखाभिरामौ

उन्निद्र-हेम-नव-पंकज-पुञ्ज-कान्ती पर्युल्लसन्नख-मयूख-शिखाभिरामौ| पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र! धत्तः पद्मानि तत्र विबुधाः
परिकल्पयन्ति|

अर्थात् :
पुष्पित नव स्वर्ण कमलों के समान शोभायमान नखों की किरण प्रभा से सुन्दर आपके चरण जहाँ पड़ते हैं वहाँ देव गण स्वर्ण
कमल रच देते हैं|

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